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Showing posts from January, 2018

मांस का मूल्य

                          प्रेरक कथा                *मांस का मूल्य* मगध सम्राट बिंन्दुसार ने एक बार अपनी सभा मे पूछा : देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए *सबसे सस्ती वस्तु क्या है ?* मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये ! चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी हालत में अन्न तो सस्ता हो ही नहीं सकता ! तब शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा : राजन, *सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है,* इसे पाने मे मेहनत कम लगती है और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है । सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन प्रधान मंत्री चाणक्य चुप थे । तब सम्राट ने उनसे पूछा : आपका इस बारे में क्या मत है ? चाणक्य ने कहा : मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा ! रात होने पर प्रधानमंत्री उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर घबरा गया । प्रधानमंत्री ने कहा : शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इस

नारी व समाज निर्माण

नारी तू नारायणी नारी व समाज निर्माण शोध सारांश--- निर्माण यानी "सृजन"। सृजन की शक्ति प्रकृति ने केवल नारी जाति को ही प्रदान की है। (हालांकि बीज तत्व की महिमा को नकारा नहीं जा सकता।) नारी वह है जो निर्माण करती है, सृष्टि का पोषण करती है ,संरक्षण करती है, पुष्पित-पल्लवित करती है ।नारी जाति के बिना पुरुष का, इस विश्व का अस्तित्व संभव नहीं है। नारी हर रूप में पूजनीय है ।नारी जाति की महिमा के  वैविध्य पर आगे विस्तार से चर्चा की गई है तथा समाज निर्माण में उसके योगदान पर भी प्रकाश डाला गया है। परिचय--- हम 'क्या' हैं हम 'कौन' हैं? इस सवाल का जवाब केवल एक नारी ही दे सकती है क्योंकि हमारे अस्तित्व का निर्माण एक नारी के द्वारा ही संभव हो पाया है। "  या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"              (श्री दुर्गा सप्तशती) नारी एक मां है, एक शक्ति है, विद्या है ,बुद्धि है, क्षमा है ,लज्जा है, पुष्टि है, भक्ति है, श्रद्धा है, तुष्टि है, मुक्ति है। यानि निर्माण(जन्म,अस्तित्व) से लेकर पूरा जीवन जीने के बाद मुक्

पतंजलि योग शास्त्र : उद्भव ,विकास और वर्तमान संदर्भ में इसकी उपयोगिता।

पतंजलि योग शास्त्र : उद्भव ,विकास और वर्तमान संदर्भ में   इसकी उपयोगिता। शोध सार योग यानि 'जोड़ना' । स्वयं को विभिन्न कर्म करते हुए सात्विक प्रवृतियों के साथ मन, वचन, और कर्म के द्वारा ईश्वरीय तत्व को प्राप्त करने का प्रयास करना और अंत में मोक्षत्व की प्रेरणा से ईश्वर के साथ ही एकाकार हो जाना। वर्तमान समय में योग को केवल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए एक प्रक्रिया के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसमें केवल आसन या प्राणायाम ही शामिल है। परंतु योग वास्तव में तन और मन की,आत्मा की प्रक्रिया है और यह अपने आप में बहुत  गहरा अर्थ लिए हुए है ।वर्तमान समय में योग की क्या उपयोगिता होनी चाहिए एवं योग के द्वारा हम विभिन्न प्रकार की समस्याओं का हल किस प्रकार कर सकते हैं इस बारे में हमने इस शोध पत्र में अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। "योग क्या है" और "योग क्या कर सकता है। परिचय --- योग आर्य जाति की प्राचीनतम विधा है जिसमें  निर्विवाद रुप से यह स्वीकार कर लिया गया है कि मोक्ष का यदि कोई सर्वोत्तम उपाय है तो वह है "योग" । इस भवसागर से पार उतरने का एकमात्र उप