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Showing posts from February, 2018

सुबूत

"सुबूत" आज मैं बात करती हूं हमारे शरीर की। केवल एक शरीर की उसमें इतना कुछ है कि आप देखकर, पढ़कर हैरान हो जाएंगे। उसके बाद भी लोग यदि भगवान होने का सबूत मांगते हैं तो मुझे उनके ज्ञान पर, उनकी सोच पर, उनके संस्कारों पर हंसी आती है। (क्यों हैरान करता है इंसान का शरीर, वैज्ञानिकों को) अद्भुत है भगवान द्वारा रचित इंसान का शरीर, जिसका प्रत्येक अंग अपने आप में ही अजूबा है ।आइए जानते हैं इसके बारे में *जबरदस्त फेफड़े* हमारे फेफड़े हर दिन 20 लाख लीटर हवा को फिल्टर करते हैं. हमें इस बात की भनक भी नहीं लगती. फेफड़ों को अगर खींचा जाए तो यह टेनिस कोर्ट के एक हिस्से को ढंक देंगे. *ऐसी और कोई फैक्ट्री नहीं* हमारा शरीर हर सेकंड 2.5 करोड़ नई कोशिकाएं बनाता है. साथ ही, हर दिन 200 अरब से ज्यादा रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है. हर वक्त शरीर में 2500 अरब रक्त कोशिकाएं मौजूद होती हैं. एक बूंद खून में 25 करोड़ कोशिकाएं होती हैं. *लाखों किलोमीटर की यात्रा*(रक्त) इंसान का खून हर दिन शरीर में 1,92,000 किलोमीटर का सफर करता है. हमारे शरीर में औसतन 5.6 लीटर खून होता है जो हर 20 सेकेंड में एक बा

बदलाव

□              बदलाव कई बार हम अपनी जिंदगी में ऐसी चीजें है देखते हैं जो उस समय हमें परेशान करने वाली होती है और हम बहुत ही खीझ जाते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यों हो रहा है ।परंतु थोड़ी ही देर बाद वही चीज है हमें जिंदगी में नया सबक, नई ऊर्जा, जीने का नया ढंग और नया सलीका दे जाती है ।कई बार हम अपने बच्चों को बहुत हल्के में ले लेते हैं या उनकी बातों पर गौर नहीं करते, जो आगे चलकर हमें यह एहसास दिलाती हैं कि काश हमने अपने बच्चों की बात उस समय सुन ली होती, मान ली होती तो आज यह घटना नहीं घटती ।इसीलिए बच्चों की बातों को ध्यान से सुनना चाहिए क्योंकि  उनका देखने का नजरिया, समझने का नजरिया अलग होता है। हम बहुत कुछ बच्चों से, उनके बर्ताव से, उनकी बातों से भी सीख सकते हैं ।आवश्यकता है तो सिर्फ धैर्य की,  प्रेम की, समझ की, और अपनेपन की। यही सब बातें हमें अपनों के करीब लाती हैं और जिंदगी के नए मायने से सिखला जाती हैं। एक ऐसी ही छोटी सी घटना जो शायद आपके जीवन में भी कुछ ना कुछ बदलाव लाने के लिए समर्थ है। जरा ध्यान से पढ़िएगा--- एक व्यक्ति काफी दिनों से चिंतित चल रहा था जिसके कारण वह काफी चिड़च

"भय" कानून का

"भय" कानून का। आज बात करते हैं भय की, कानून के भय की। आज अखबार के मुख्य पृष्ठ पर ही यह खबर थी कि एक शख्स ने दूसरे शख्स को केवल गाड़ी ठीक से चलाने की नसीहत दी तो उन्होंने उसे गोली मार दी। उस इंसान की मदद को कोई नहीं आया ।परिणाम , उसकी मौत मौत हो गई। (विनोद मेहरा , 48 वर्ष जी टी करनाल रोड भलस्वा फ्लाईओवर) घर से जब किसी की असामयिक मृत्यु हो जाती है  तो उस परिवार पर क्या बीतती है, यह सब शब्दों में बयान कर पाना मुश्किल है क्योंकि यह ऐसा दर्द है जो उसके परिवार को, उस शख्स से जुड़े हर इंसान को जिंदगी भर झेलना पड़ता है। कई लोग यहां सोचेंगे कि यह खबर तो पुरानी है। तो हफ्ते, 10 दिन में किसी की जिंदगी नहीं बदलती ।जिस घर से एक इंसान की मौत हुई है 10 दिन में उनका कुछ भी नहीं बदलता और जिंदगी की असलियत सामने आने लगती है। और खुदा ना खास्ता यदि वह इंसान पूरे घर का इकलौता ही कमाने वाला हो तो 10 दिन में नजारे दिखाई देने लग जाते हैं। कौन अपना है कौन पराया है, सब की पहचान हो जाती है। खैर यह बात हुई  भावनाओं की। और भी तरह-तरह की खबरें देख कर मन बहुत उद्वेलित ,खिन्न और परेशान हो जाता  है। रोज़ ही

द्विलिंगीय समाज में किन्नर जीवन का यथार्थ

द्विलिंगीय  समाज में किन्नर जीवन का यथार्थ "किन्नर" एक ऐसा शब्द है जो अपने आप में अधूरा है। किन्नर वह लोग कहे जाते हैं जो नाच गाकर स्वर्ग में देवताओं की सफलता, मनोरंजन आदि के आयोजन में अपनी प्रस्तुति प्रदान करके खुशी और उत्साह में इजाफा करते थे। परंतु आज के समय में किन्नर को अजीब सी दृष्टि से देखा जाता है ।पौराणिक काल में तो सिर्फ गाने बजाने के कार्य से ही  किन्नर समाज का गुजारा हो जाता था । परंतु वर्तमान समाज में इतनी जटिलताएं हैं कि यही काम काफी नहीं है। किन्नर वे लोग हैं जो प्रकृति का अभिशाप कहे जा सकते हैं ।परंतु  वे  केवल शारीरिक रूप से अक्षम है या यूं कहें कि केवल  संतानोत्पत्ति,  'सृजन' नहीं कर पाते नहीं हैं। बाकी वे भी हम  सब की तरह इंसान ही  हैं ।वो जन्म नहीं दे सकते परंतु ममता, प्यार, दुलार, देखभाल यह सब तो बेहतरीन तरीके से कर सकते हैं।मुम्बई के  माहिम में एक किन्नर ने  एक लड़की को पाला तथा पढ़ा-लिखाकर कर समाज में एक  सम्माननीय दर्जा दिलवाया । "तमन्ना" फिल्म का निर्माण इसी सत्य कथा पर किया गया था, जो एक किन्नर की वास्तविक जीवन की कहानी थी । वा