द्विलिंगीय समाज में किन्नर जीवन का यथार्थ

द्विलिंगीय  समाज में किन्नर जीवन का यथार्थ

"किन्नर" एक ऐसा शब्द है जो अपने आप में अधूरा है। किन्नर वह लोग कहे जाते हैं जो नाच गाकर स्वर्ग में देवताओं की सफलता, मनोरंजन आदि के आयोजन में अपनी प्रस्तुति प्रदान करके खुशी और उत्साह में इजाफा करते थे। परंतु आज के समय में किन्नर को अजीब सी दृष्टि से देखा जाता है ।पौराणिक काल में तो सिर्फ गाने बजाने के कार्य से ही  किन्नर समाज का गुजारा हो जाता था । परंतु वर्तमान समाज में इतनी जटिलताएं हैं कि यही काम काफी नहीं है।

किन्नर वे लोग हैं जो प्रकृति का अभिशाप कहे जा सकते हैं ।परंतु  वे  केवल शारीरिक रूप से अक्षम है या यूं कहें कि केवल  संतानोत्पत्ति,  'सृजन' नहीं कर पाते नहीं हैं। बाकी वे भी हम  सब की तरह इंसान ही  हैं ।वो जन्म नहीं दे सकते परंतु ममता, प्यार, दुलार, देखभाल यह सब तो बेहतरीन तरीके से कर सकते हैं।मुम्बई के  माहिम में एक किन्नर ने  एक लड़की को पाला तथा पढ़ा-लिखाकर कर समाज में एक  सम्माननीय दर्जा दिलवाया । "तमन्ना" फिल्म का निर्माण इसी सत्य कथा पर किया गया था, जो एक किन्नर की वास्तविक जीवन की कहानी थी ।
वास्तव में यदि किन्नर समाज  जन्म नही दे सकता  तो कम से कम  यह भी नहीं करता कि गर्भ में लड़की है  तो उसकी हत्या (भ्रूण हत्या) जन्म लेने से पहले ही कर दी जाए, या पैदा होते ही बच्चे को अनाथ आश्रम या कूड़े के ढ़ेर पर  छोड़ दिया जाए।

ये तो  हमारा  "सभ्रान्त" समाज  अपने क्षणिक आनंद के लिए ईश्वर की  इस अद्वितीय शक्ति को इस प्रकार तिरस्कृत करता है, और करता ही चला जा रहा  है ।और दूसरी तरफ किन्नर समाज तो  हमारी खुशियों को बढ़ाता है। वो  हमारे घर में (पुत्र रत्न) संतान प्राप्ति या विवाह  जैसे अवसरों पर दुआएं देने आते हैं क्योंकि यह दोनों ही मांगलिक कार्य ईश्वर ने उनके भाग्य में नहीं लिखे हैं। वह हमें आशीष देते हैं।

मैं यह पूछना चाहती हूँ कि क्या लिंग पूरी तरह से विकसित ना होने पर हमारी बुद्धि, हमारी प्रतिभा, अनेकों प्रकार की कलाएं भी अविकसित ही रह जाती हैं ?आज किन्नर समाज अपना एक अलग मुकाम हासिल करने में आगे आता जा रहा है।   आज किन्नर समाज ने इतिहास रच दिया है। यह राजनीति में सक्रिय हैं ,ड्राइवर है, मॉडल हैं, कॉलेज में प्रोफेसर हैं।यानि उन्होंने अपनी मानसिकता को ,अपनी प्रतिभा को "अविकसित" नहीं होने दिया ।सरकार ने भी  सरकारी स्कूलों तथा अन्य संस्थाओं के प्रवेश  पत्रों पर THIRD GENDER लिखा है जो एक  सराहनीय कदम है ,ताकि इन  लोगों को समाज के सामने आने में शर्म महसूस ना हो। इसके पीछे एक गहरी सोच है कि किन्नर समुदाय शिक्षा के क्षेत्र में पीछे क्यों रह जाता है ? उनके लिए पहले विद्यालयों में प्रवेश की सुविधा ही नहीं थी। कॉलम  नहीं था FORMS फॉर्म्स में जिसके कारण उनका एक अलग समुदाय में ही रहना लाजमी हो गया। वह हमारे समाज के साथ नहीं रह पाए और किसी के भी जीवन में शिक्षा और  परिवेश,सामाजिक वातावरण  का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है ,उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर। इसलिए किन्नरों को शिक्षा का परिवेश ही नहीं प्राप्त हुआ।
परंतु अब समय थोड़ा बदल रहा है। लोग  वास्तविकता पहचान रहे हैं और उसे अपना भी रहे हैं ।अब किन्नरों ने आगे आकर काम करना आरंभ कर दिया है जो प्रेरणा है अन्य सभी किन्नरों के लिए । ये ऐसा समाज है जिनका जीवन अधूरा है ।इसलिए हम सबको इनका यथोचित सम्मान करना चाहिए ।जहां तक हो सके उन्हें प्रेरित करना चाहिए कि वो शिक्षा ग्रहण करें तथा अपनी पसंद का कोई भी व्यवसाय करने के लिए स्वतंत्र  हों।
हमारी सरकार को उनकी उत्थान के लिए अभी बहुत सी योजनाएं बनाने की आवश्यकता है। हम सब केवल इतना करें  कि उनको हेय दृष्टि से ना देखते हुए  केवल अपने समान ही इंसान समझकर सहानुभूति रखें। इन सभी  को भी जीने का हक है, प्यार करने का हक है, और प्यार पाने का भी हक है, समाज में इज्जत पाने का हक है। और वे सभी  हक(मौलिक अधिकार) प्राप्त  है जो हमें हमारे संविधान ने  दिए हैं । अतः हमें इनकी दुआएं लेनी चाहिए क्योंकि ये  सिर्फ दुआएं देने के लिए  ही बने हैं।इसलिए इन्हें इनका हक मिलता रहे एवम  समाज में इनकी प्रतिष्ठा बननी प्रारंभ हो जाए एवं उन्हें यथोचित मान सम्मान प्राप्त होता रहे।

इतिहास साक्षी है कि महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान महान धनुर्धर अर्जुन ने भी किन्नर "बृहन्नला" का रूप धारण किया था ।और अंबिका ने भी भीष्म से बदला लेने हेतु "शिखंडी" का रूप धारण किया था तो किन्नर समुदाय का नाम भी इतिहास में भी  दर्ज है ।अंत में सिर्फ यही कहना चाहूंगी कि किन्नरों को भी समाज में उनकी प्रतिभा, उनकी शिक्षा इत्यादि के आधार पर उतने ही समान अवसर मिलने  चाहिए जितने किसी भी अन्य स्त्री या पुरुष को मिलते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि किन्नर समाज  हमारे पौराणिक काल से ही हमारे समाज के साथ रहता चला आ रहा है, और यह भी हमारे समाज का ही अभिन्न अंग है। इस बात को हम सहजता से स्वीकार करना चाहिए, और ऐसा करना होगा क्योंकि इन्हें भी संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार प्राप्त हैं जो हम सब भारतीयों को प्राप्त हैं। तो हमें किसी भी प्रकार से उनके अधिकारों का हनन नहीं करना चाहिए तथा इन सब को  भी यथोचित आदर, सम्मान देना चाहिए, केवल एक इंसान समझ कर ।
यदि हम उनका दर्द महसूस करके देखें तो हमें यह एहसास हो कि जब दूसरों को शादी करते हुए देखते हैं तो इनके मन पर क्या गुजरती होगी। जब ये लोग  दूसरे लोगों को  माता - पिता बनने का आनंद प्राप्त करते  देखते हैं तो यह क्या सोचते होंगे? क्या इनमें भावनाओं की कमी है? क्या इनके कोई अरमान नहीं होंगे? परंतु यह सब भूल कर और इसे अपना भाग्य मानकर, नियति को स्वीकार कर लेते हैं तथा हमारी खुशियों को बढ़ाने के लिए हमारे घरों में दुआओं की बारिश करते हैं।
आज के संदर्भ में यह सत्य है कि कई बार किन्नर समुदाय बहुत अधिक मांग करते हैं तथा पूरी ना होने पर तरह - तरह की धमकी भी देते हैं ।रेड लाइट्स पर खड़े होकर भी पैसे मांगते हैं। परंतु शायद ये उनकी मजबूरी है क्योंकि उन्होंने ना तो शिक्षा हासिल की और ना ही उन्हें किसी भी प्रकार के व्यवसाय का ही ज्ञान और अनुभव है ।शायद इसलिए भी वह यह सब करने पर मजबूर है ।यदि हम सब तथा हमारी सरकार इस दिशा में कार्य करें तो भविष्य में इन सब को भी शिक्षा तथा रोजगार के समान अवसर प्राप्त होंगे तथा यह लोग भी मांग कर नहीं काम कर के आत्मसम्मान के साथ अपना जीवन व्यतीत कर पाएंगे । मैं जानती हूं कि यह बहुत लंबा और कठिन  रास्ता है पर नामुमकिन नहीं।
लीक से हटकर किन्नर समुदाय के  कुछ लोगों ने  ही इतिहास रच दिया है ।वो  सब लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं। इनमें से कुछ का नाम मैं लेना चाहूंगी जैसे पद्मिनी प्रकाश पहली ऐसी किन्नर है जिन्होंने न्यूज़ एंकरिंग की। उन्होंने अपनी किताब "द ट्रुथ अबाउट मी"  THE TRUTH ABOUT ME को थर्ड जेंडर लिटरेचर एट अमेरिकन कॉलेज ऑफ मदुरई के रूप में शामिल किया। मधुबाई ने बीजेपी  के खिलाफ लड़ कर मेयर का चुनाव जीता ।शांता खुरई  ऐसी किन्नर है जिन्होंने सैलून खोलकर अपनी पहचान बनाई। दिल्ली की रुद्राणी क्षेत्री पहली ऐसी  किन्नर है जिन्होंने मॉडल के रूप में स्वयं को स्थापित किया। मानवी बंधोपाध्याय पहली किन्नर प्रिंसिपल हैं। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी जिन्होंने  किन्नरों को  समाज  में थर्ड जेंडर के रूप में  पहचान दिलाई।ये वे  कुछ किन्नर है जिन्होंने लीक से हटकर कुछ किया तथा अभी भी अपना कार्य सफलता पूर्वक करती चली आ रही हैं ।किन्नर समाज भी हर क्षेत्र में उन्नति कर सकता है यह बात इन सब ने साबित कर दी है।

निष्कर्षत: यही कहा जा सकता है हो सकता है कि किन्नर होना तो अभिशाप हो सकता है परंतु किन्नर बने रहकर कुछ ना कर पाना अभिशाप ना बन जाए ,हमें यही सार्थक सकारात्मक, प्रयास करने होंगे ताकि वे लोग  भी अपना जीवन अपनी इच्छा अनुसार व्यतीत कर सकें तथा आत्म सम्मान के साथ समाज के साथ रह पाएं।

लेखिका डॉक्टर विदुषी शर्मा

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