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Showing posts from April, 2018

बलिदान का मूल्य

            बलिदान का मूल्य एक अतीव सुन्दरी युवती प्लेन ( हवाई जहाज ) पर चढ़ी औऱ बैठने के लिये अपनी सीट ढूंढने लगी। उसने पाया कि उसकी सीट एक ऐसे पुरूष के बगल में है जिसके दोनों हाथ नहीं थे। उस खूबसूरत महिला ने विमान परिचारिका ( airhostess ) को बुलाया और कहा कि मैं इस व्यक्ति के बगल में नहीं बैठ सकती । मुझे एक बिना हाथों के व्यक्ति के साथ बैठकर यात्रा करना असुविधाजनक प्रतीत हो रहा है, अतः आप मेरी सीट बदल दें। एयर होस्टेस ने पूछा " मैडम क्या में असुविधा का कारण जान सकती हूँ ?" सुन्दर युवती बोली मुझे इस प्रकार के अंगहीन, लूले, लंगड़े व्यक्ति पसंद नहीं हैं। मुझे ऐसे व्यक्तियों के साथ यात्रा करना तो क्या थोड़ी देर बैठना भी पसंद नहीं है। यह सुनकर एयर होस्टेस को धक्का लगा, क्योंकि वह वह व्यक्ति देखने में और बातचीत में बड़ा ही सभ्य और सुसंस्कृत लग रहा था। सुन्दर युवती ने पुनः दोहराया की मुझे इसके साथ नहीं बैठना है, आप मेरी सीट बदल दें। एयरहोस्टेस ने युवती से कहा आप धैर्य रखें हम आपकी सुविधा हेतु हर सम्भव प्रयत्न करेंगे। उसने पूरा विमान देखा और पाया कि कोई सीट उपलब्ध नहीं है। एयरह

आदिवासी जीवन, लोकविश्वास और परंपराएं

आदिवासी जीवन, लोकविश्वास और परंपराएं। शोध सारांश -- आदिवासी जीवन से संबंधित किसी भी विषय पर, उनसे जुड़े किसी भी पहलू पर बात करने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि आदिवासी हैं कौन? उनकी पहचान क्या है? उनका जीवन, उनकी मान्यताएं ,उनकी परंपराएं ,उनकी आस्था, विश्वास, उनकी शिक्षा उनकी मातृभाषा, सभ्यता एवं संस्कृति आदि क्या है? या क्या रही होंगी ? इन सब के बारे में एक दृष्टिपात करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि इन सब की जानकारी के बिना आदिवासी जीवन से संबंधित किसी भी बिंदु पर हम अपने विचारों के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे। परिचय "आदिवासी" नाम से ही स्पष्ट है कि वे लोग जो इस धरती पर अनादि काल से विचर रहे हैं। ये प्राकृतिक मानव जा सकते हैं जो पूर्णतया प्रकृति पर ही आश्रित थे तथा आश्रित ही रह रहे हैं । ये समाज 21वीं शताब्दी के ज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, शिक्षा ,आदि से अनभिज्ञ हैं।( परंतु धीरे-धीरे सरकार तथा निजी संगठनों की मदद से यह आदिवासी समाज आधुनिक संसार के साथ जुड़ने का प्रयास कर रहा है) यदि वास्तव में देखा जाए तो आदिवासी समाज ही है जो हमारी प्रकृति का, प्राकृतिक संपदा तथा

प्रारब्ध

       हम अक्सर कर्मों की बात करते हैं ।अपने दु:खों को ही सर्वोपरि मानते हैं । हम यह भूल जाते हैं इस पूरी पृथ्वी पर कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है जिसे किसी भी प्रकार का कोई दुख ना हो। जो हमारे कर्म है वह हमें भोगने ही पड़ते हैं, यह अटल सत्य है। इसीलिए भगवान कृष्ण ने भी कर्म की प्रधानता हर जगह सिद्ध की है। एक छोटी सी कथा कि किस प्रकार हमारे कर्म हमारे सामने आते हैं और ईश्वर हमें किस तरह आलंबन देते हैं। इन सब अच्छी बातों का सांझा करने का सिर्फ एक ही मकसद है कि किसी भी तरह से हमारे विचार शुद्ध हो, हमारी भावनाएं विशुद्ध हो, एवं हमारे कर्म पवित्र हो ।यदि इससे किसी के भी मन में कुछ परिवर्तन होता है तो यही हमारी उपलब्धि है। कथा को ध्यान से  पढ़ना जरूरी है  ।                            *प्रारब्ध*     एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था । धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे मे ही पड़ा रहता था ।      जब भी उसे शौच; स्नान आदि के लिये जाना होता था; वह अपने बेटो को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे ।     धीरे धीरे कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी कभी आत