प्रारब्ध

       हम अक्सर कर्मों की बात करते हैं ।अपने दु:खों को ही सर्वोपरि मानते हैं । हम यह भूल जाते हैं इस पूरी पृथ्वी पर कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है जिसे किसी भी प्रकार का कोई दुख ना हो। जो हमारे कर्म है वह हमें भोगने ही पड़ते हैं, यह अटल सत्य है। इसीलिए भगवान कृष्ण ने भी कर्म की प्रधानता हर जगह सिद्ध की है।

एक छोटी सी कथा कि किस प्रकार हमारे कर्म हमारे सामने आते हैं और ईश्वर हमें किस तरह आलंबन देते हैं। इन सब अच्छी बातों का सांझा करने का सिर्फ एक ही मकसद है कि किसी भी तरह से हमारे विचार शुद्ध हो, हमारी भावनाएं विशुद्ध हो, एवं हमारे कर्म पवित्र हो ।यदि इससे किसी के भी मन में कुछ परिवर्तन होता है तो यही हमारी उपलब्धि है। कथा को ध्यान से  पढ़ना जरूरी है  ।       

                    *प्रारब्ध*

    एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था । धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे मे ही पड़ा रहता था ।

     जब भी उसे शौच; स्नान आदि के लिये जाना होता था; वह अपने बेटो को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे ।

    धीरे धीरे कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी कभी आते और देर रात तो नहीं भी आते थे।इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे

    अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा था एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज लगायी, तुरन्त एक लड़का आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ उनको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है । अब ये रोज का नियम हो गया ।

    एक रात उनको शक हो जाता है कि, पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नही आते थे। लेकिन ये  तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बडे कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है ।

    एक रात वह व्यक्ति उसका हाथ पकड लेता है और पूछता है कि सच बता तू कौन है ? मेरे बेटे तो ऐसे नही हैं ।

    अभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक उजाला हुआऔर उस लड़के रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक रूप दिखाया।

     वह व्यक्ति रोते हुये कहता है : हे प्रभु आप स्वयं मेरे निवृत्ती के कार्य कर रहे है । यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुक्ति ही दे दो ना ।

     प्रभु कहते है कि जो आप भुगत रहे है वो आपके प्रारब्ध है । आप मेरे सच्चे साधक है; हर समय मेरा नाम जप करते है इसलिये मै आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूँ ।

     व्यक्ति कहता है कि क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बडे है; क्या आपकी कृपा, मेरे प्रारब्ध नही काट सकती है ।

     प्रभु कहते है कि, मेरी कृपा सर्वोपरि है; ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है; लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा । यही कर्म नियम है । इसलिए आपके प्रारब्ध मैं स्वयं अपने हाथो से कटवा कर इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूँ ।

ईश्वर कहते है: *प्रारब्ध तीन तरह* के होते है :

*मन्द*,
                    *तीव्र*, तथा
                                            *तीव्रतम*

*मन्द प्रारब्ध* मेरा नाम जपने से कट जाते है । *तीव्र प्रारब्ध* किसी सच्चे संत का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते है । पर *तीव्रतम प्रारब्ध* भुगतने ही पडते है।

लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं; उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर कटवाता हूँ और तीव्रता का अहसास नहीं होने देता हूँ ।

           *प्रारब्ध पहले रचा, पीछे रचा शरीर ।*
  *तुलसी चिन्ता क्यों करे, भज ले श्री रघुबीर।।

संकलन एवं विश्लेषक

डॉ विदुषी शर्मा

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